मंगलवार, 14 जून 2016

आसमां में चाँद छुपकर रो रहा है क्यूँ भला..

ब़हर-- 2122 2122 2122 212



आसमां में चाँद छुपकर रो रहा है क्यूँ भला..??
चाँदनी का नूर मद्धिम हो रहा है क्यूँ भला..??

धूल की परतें जमी हैं आदमी की सोच पर
नफ़रतों की फस्ल पूछो बो रहा है क्यूँ भला..??

हो रही गंदी सियासत मजहबी कंधों तले
देश का हाक़िम न जाने सो रहा है क्यूँ भला..??

सिर्फ़ दौलत की चमक में नाच नंगा हो रहा
और ईमां धुंध माफिक खो रहा है क्यूँ भला..??

सींचकर बंजर ज़मीं को मर रहा बेमौत है
जख़्म गहरे खूं से' आखिर धो रहा है क्यूँ भला..??

लोग मुड़कर पूछते हैं ऐ "परिंदे" सुन जरा...!
मौत का फरमान आखिर ढो रहा है क्यूँ भला..???



पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
9927788180

गुरुवार, 2 जून 2016

हम अकेले अनमने से हो गये.....!!

बह़र-- 2122 2122 212

हम अकेले अनमने से हो गये
धुंध में सब ख़्वाब जैसे खो गये
बोलियाँ जब लग रहीं थीं हुस्न की
देख मंजर आशिकी का रो गये
नींद में सब सो रहे थे मस्त से
बीज वो तब नफ़रतों के बो गये
रात कैसी बावली सी लग रही
तान चादर मौत की हम सो गये
कर रहे थे बात ऊँची कल वही
रेत बनकर इस जहां से वो गये
ऐ "परिंदे" देख कर तू उड़ जरा
अब तो' अपने देख कातिल हो गये...!!

📝पंकज शर्मा  "परिंदा"
खैर  ( अलीगढ़  )
09927788180                                                                

मंगलवार, 10 मई 2016

सर्द पूनम का मुझे सपना सुहाना याद है...

****** ग़ज़ल *******
*******************
बहर-- 2122 2122 2122 212
रदीफ़-- याद है
काफिया-- ना

सर्द पूनम का मुझे सपना सुहाना याद है
माँ कहानी और लोरी, सब सुनाना याद है।
रोज आते हैं फरिश्ते, नींद के आगोश में
इस तरह कहना तुम्हारा, था बहाना याद है।
गोद तेरी थी यकीनन, स्वर्ग से कुछ कम नहीं
चाह कर ना भूल पाया, वो झुलाना याद है।
बेरहम थी रात जालिम, मौत की मंशा लिए
पास आकर माँ को' छीना, दूर जाना याद है।
माँ बिना क्या हाल होता, आ के' मुझसे पूछ लो
मिल रही दुत्कार देखो, सर झुकाना याद है।
जो थे' अपने औ पराये, सब किनारा कर रहे
छोड़ कर रोता.. गली में, मुँह छुपाना याद है।
थाम उँगली चल पड़ा था, मैं मसीहा मान कर
दर्द नफरत का दिया हर, पल पुराना याद है।
आँख बंजर हो चुकी है, अश्क खूं के बह रहे
रोशनी के नाम पर खुद को जलाना याद है।
हाथ जख्मी हो गये दो, वक्त रोटी के लिये
अजनबी इस भीड़ मे बस, तिलमिलाना याद है।
रह गया क्या देखना अब, इस जमाने में भला
आँख में आंसू  छुपाकर, मुस्कुराना याद है।
था वो' प्यारा सा घरौंदा, इस "परिंदे" का कभी
आग जिसने थी लगायी, हर घराना याद है।।

पंकज शर्मा  "परिंदा"
खैर  ( अलीगढ़ )
०९९२७७८८१८०

सोमवार, 14 मार्च 2016

***** ग़ज़ल *****

बह़र- 2122 2122 2122 212

जान लेती है कसम से ये नज़ाकत प्यार की
खेलना जुल्फों से' तेरा है कयामत प्यार की।।


हो रहे मदहोश सब क्यूँ देखकर आवो-हवा
ग़ौर कर मगरूर इंसा है शरारत प्यार की।।


चोट देखो कर रहे सब जख़्म मेरे देखकर
मैं हूँ' नादां दे रहा उनको हिदायत प्यार की।।


नफ़रतों की आग में सब खाक है अब हो रहा
रो रहा क्यूँ आज इंसा है शिकायत प्यार की।।


गर्दिशों में हैं सितारे ऐ "परिंदे" मान ले
मौत ने मज़मा लगाया या बगावत प्यार की।।




पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर  ( अलीगढ़  )
09927788180

** कुछ अश्आर पेश ए खिदमत **

1222 1222 1222 1222


न मंदिर में न मस्जिद में, न काबा में न काशी में,
खुदा से है अगर मिलना, मिलो माँ बाप से साहिब।।


करो मत जुर्म तुम ऐसे, पड़े नजरें झुकानी जो,
हकीकत है झुकी नजरें, कि माँ पहचान लेती है।।


मुनासिब हो अगर मिलना, खुदा के पास जाकर के
चली आना, चली आना, मे'री माँ तुम चली आना।


खुदा भी साथ देता है, अगर माँ बाप हैं यारो,
बिना माँ बाप के जीना, मिलो आकर "परिंदे" से।।


कहा करता हूँ' अक्सर मैं, मुहब्बत मर चुकी है अब,
मुहब्बत है अगर करनी, करो फिर हीर राँझे सी।।


अदावत में मुहब्बत है, तो' हाक़िम हो जमाने के,
मुहब्बत में अदावत है, तो' काफिर हो यक़ीनन तुम।।




पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़  )
09927788180

रविवार, 13 मार्च 2016

कुण्डलियाँ छंद

१-
लेकर कलम दवात अरु, संग साँच कौ
साथ।
लिखूँ कुण्डली छंद अब, रखो आप
सर हाथ।।
रखो आप सर हाथ, नयी नित कविता
लाऊँ।
दे दो सुर अरु साज, गीत सँग मिलकर
गाऊँ।।
पंकज हो अब खास, फूल चरनन में
देकर।
करो प्रेम बौछार, सँग शारदे का लेकर।।


२-
खून पसीना सींचकर, रहा अन्न
उपजाय
पोषण सबका कर रहा, रूखा
सूखा खाय
रूखा सूखा खाय, कि पीता
नयनम नीरम
नेता माल उड़ाय, रखें अब कब
तक धीरम
कहे भारती पुत्र, करो मत दूभर
जीना
जाओगे यमलोक, न चूसो खून
पसीना।।

पंकज शर्मा  "परिंदा"
खैर  ( अलीगढ़  )
९९२७७८८१८०

**** प्यार की लक्ष्मण रेखा ****

प्यार की लक्ष्मण रेखा
लाँघते समय
तुम नहीं जानते
कि नतीज़न
एक फूल खिलेगा
जिसके स्वप्नों को
उसकी
इच्छा के विरुद्ध
तुम दोगे मसल


एक अजन्मे पुष्प की
विस्मित आँखों में
देखोगे तुम
सैंकड़ों प्रश्न चिह्न एकसाथ


या फिर एक नन्ही कली
हाथ बांधे खड़ी होगी
सम्मुख आपके
खिलने की आशा लिए
अपनी प्रार्थना के उत्तर में


सभी सीमाओं व बंधों को
तोड़ते हुए
तुम नहीं जानते
कि तुम
अपने ही रक्त को कुचलने
की तैयारी में जुटे हो.......!!


पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़  )
09927788180

अधूरे वादे....!

इक लड़का,
पागल सा
दीवाना सा
मासूम सा
अंजाना सा


अपने घर की मुँडेर पर बैठा,
इन गलियों
और चौबारों को,
इन कूँचों और बाजारों को
देखता है,
जहाँ उसने
अपना बचपन गुजारा था।


होली के मेले में,
पकड़कर
अपने नन्हे हाथों से,
अपनी माँ का हाथ,
या फिर
यूँ कहो कि,
माँ के हाथों में
वो मासूम हाथ..,
जिसे थाम कर वो चला करती थी
बेखटक, अनवरत्.....!


उस वक्त
बेखबर था
वो लड़का,
अपनी माँ की उस अंजानी सी
मुस्कुराहट से...
जो रहा करती थी अक्सर ,
जब वो होता था साथ उसके..!


अगले बरस
फिर आया था मेला,
वही खेल और खिलौने,
बखूबी याद था उसे,
पिछले बरस
छूटे खिलौनों को दिलाने का वादा..
आँखों में था इंतज़ार
अपनी माँ का...!


मगर उसे कौन समझाये,
कि बचपन के वादे तो
कच्ची डोर की तरह होते हैं,
और
भला जाने वाले
कब लौट कर आते हैं ..!
मेरी माँ..... लौट आ....
तू लौट आ.. उन,
खिलौनों की दुकानों की तरह,
जो आती हैं हर साल,
इन गलियों और चौबारों में..!


मेरी माँ.... लौट आ.....
हाँ माँ.......बस तू लौट आ....!!!




पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180

भगवन तेरे भारत में ये, कैसी विपदा आई है....!

"ताटंक छंद"

हैं आतंकी कीड़े देखो, रोज रात को निकल रहे,
टुकड़े टुकड़े कर के देखो, कैसे सबको निगल रहे,
दहशतगर्दी फैल रही है, भारत माँ के सीने पर,
खुलेआम हैं दस्तक देते, "थू" है अब तो जीने पर।


संसद देखो अब भी कैसे, चुपके चुपके रोती है,
मुंबई वाली जनता आज, सहमे सहमे सोती है,
कब तक सीना छलनी होगा, आज बता दो मोदी जी,
भारत माता पूछ रही है, बेबस होकर मोदी जी।


आदेश करो अब सेना को, ढूंढ़ ढूंढ़ कर वार करे,
अफजल दाउद आतंकों का, अब समूल संहार करे,
घर में घुसकर खंजर मारो, आतंकी सरदारों को
और टाँग दो सूली पर फिर, इनके पहरेदारों को।


छप्पन इंची सीना लेकर, रहे घूम क्यों मोदी जी,
आर पार का युद्ध लड़ो अब, बातें छोड़ो मोदी जो,
इधर गरीबी मँहगाई भी, डायन बन कर आई है,
अच्छे दिन आयेंगे कहकर, खोदी गहरी खाई है।


देख बजट का हाल आज फिर, आम आदमी रोता है,
खादी वाला नेता देखो, नींद चैन की सोता है,
रो रहा हूँ खून के आँसू, कैसी सत्ता पाई है ,
भगवन तेरे भारत में ये, कैसी विपदा आई है..???


पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़  )
09927788180