बह़र-- 2122 2122 212
हम अकेले अनमने से हो गये
धुंध में सब ख़्वाब जैसे खो गये
बोलियाँ जब लग रहीं थीं हुस्न की
देख मंजर आशिकी का रो गये
नींद में सब सो रहे थे मस्त से
बीज वो तब नफ़रतों के बो गये
रात कैसी बावली सी लग रही
तान चादर मौत की हम सो गये
कर रहे थे बात ऊँची कल वही
रेत बनकर इस जहां से वो गये
ऐ "परिंदे" देख कर तू उड़ जरा
अब तो' अपने देख कातिल हो गये...!!
📝पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180
हम अकेले अनमने से हो गये
धुंध में सब ख़्वाब जैसे खो गये
बोलियाँ जब लग रहीं थीं हुस्न की
देख मंजर आशिकी का रो गये
नींद में सब सो रहे थे मस्त से
बीज वो तब नफ़रतों के बो गये
रात कैसी बावली सी लग रही
तान चादर मौत की हम सो गये
कर रहे थे बात ऊँची कल वही
रेत बनकर इस जहां से वो गये
ऐ "परिंदे" देख कर तू उड़ जरा
अब तो' अपने देख कातिल हो गये...!!
📝पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180
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