गुरुवार, 12 मार्च 2015

"हिन्दी और ऊर्दू"

आज रात (06-03-2015) मेरे शहर में होली मिलन समारोह के उपलक्ष्य में मुस्लिम भाइयों की तरफ से "अखिल भारतीय कवि सम्मेलन" का सफल आयोजन हुआ..,

शुक्रिया उस "मुस्लिम आवाम" का जिसके नाम पर अक्सर कद्दावर नेती गंदी राजनीति करते रहते हैं...!

एक ही मंच से "हिन्दी और ऊर्दू" का समायोजन अभूतपूर्व रहा.....!



आज रात मैंने देखा
ऊर्दू को
खिलखिलाते हुए
हिन्दी औ ऊर्द़ू झूम रही थीं
बाँहों में बाँहें डाल
लग रहा था
कि जैसे
नफ़रत के मेले में,
बिछड़ी
दो बहनें
आँखों में खौफ़ लिऐ बढ़ रही हों
मिलने गले..,

कदम ताल करते हुऐ
ग़जल और दोहे
बढ़ते
चले जा रहे थे
राजपथ पर
झुमरी तलैया के पास
कविताऐं
नाच रहीं थीं
मुशायरों के संग...,

मैं देख रहा था
चमकती
आँखों से होली पर
इस
अद्भुत मिलन
को
ऊर्दू सुबक रही थी
हिन्दी की उपमाऐं
सहला
रही थी भीगी आखों से
बालों को उसके
बसंत
अठखेलियाँ कर रहा था खुले आसमां में...,

इतिहास ग़वाह है ग़र "हिन्दी"
ज़िस्म
तो
ऊर्दू ऱूह है उसकी..,
मगर
आपसी द्वेष,
सामाजिक कुरीतियों
और
राजनैतिक पाटों के बीच
रौंदी गयी
अस्मत् दोनों की..,

आज ऊर्दू की "ऱूह"
समा चुकी थी
हिन्दी के "ज़िस्म" में
माँ
भारती मुस्कुरा रही थी
देखकर
खुले चौबारे में दोनो "बेटियों"
का ये
अद्भुत मिलन

मैं
बस..
बस्स...,
इतना कहूँगा...
ऐ होली....! तेरे आने का शुक्रिया

"जय हिन्द"

.......पंकज शर्मा

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