मंगलवार, 10 मार्च 2015

बेचारे पेड़

एक चीख़....बड़ी ही दर्दनाक्
अक्समात्
मेरे कानों तक पहुँची..
सिहर उठा
मैं
सुनकर अंदर तक..,
चीख़ रहा था बेतहाशा
इक़
छोटा पौधा
जो चढ़ रहा था सीढ़िया
यौवन की
झर झर झर
काँप रही थीं पत्तियाँ...!

चेहरे पर कुत्सित् मुस्कान लिऐ
आदमजात्
चमका रहा था कुल्हाड़ी
पत्थर के
काले टुकड़े से...

ओह....
कितना खतरनाक वार...!
बंद
हो गयीं चीखें...
हो गया बंद
झरझराना पत्तियों का
हैरां सा
गिर गया "वो"
लिऐ अनेकों प्रश्न चिह्न ज़ेहन में..??

गूँज उठा
राक्षसी अट्ठाहस
पर्यावरण में....!

......पंकज शर्मा

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