मंगलवार, 24 मार्च 2015

"वक़्त की मार"

मैं मिलकर आया हूँ
उन
हुक़्मरानों से
जो
वक़्त को
तरज़ीह नहीं देते
वे कहा करते थे
अक्सर
कि
वक़्त
खूँटी से बँधी
जाग़ीर है उनकी
मग़र आज
वो
कर रहे हैं इंतजार
झौंपड़-पट्टी में बैठ
वक़्त के
बदलने का

ना-मुराद़..
बेखब़र थे वक़्त की मार से....!!

......पंकज शर्मा

सोमवार, 16 मार्च 2015

"मासूम तितलियाँ"

कभी कभी इन काली स्याह
रातों में
जब सब आवाजें
सो जाती हैं
तो
टिक..टिक..टिक..
करते
घड़ी के काँटे
ले जाते हैं
कहीं दूर... अतीत की बगिया में
जहाँ
फुदक रही होती हैं
कुमुदनी
के फूल पर
यादों की तितलियाँ..,

तितलियाँ...जब
पंख
फड़फड़ाती हैं तो
मैं
देखता हूँ
गर्द़ की चादर को उड़ते हुऐ
जो
मेरे और अतीत के
बीच तनी थी
तितलियाँ खेल रही हैं
आँख-मिचौली
झूम रही हैं भँवरों के संग
कूदती हैं
कुमुदनी से चमेली पर बे-खटक

बगिया महक रही है फूलों
की गंध से
तभी
नोंच दिये पंख काफ़िरों ने
तड़प उठीं
तितलियाँ
रो पड़ा आसमां
कुमुदनी
मूर्छित है
चमेली भिगो रही है
आँसुओं से गालों को उसके

आज फिर...रो उठा
मैं.., जाकर
अतीत के उपवन में..!

टिक..टिक..टिक..
काँटे
भाग रहे हैं अनवरत्
और
मैं ढूँढ़ रहा हूँ
तकिये
के नीचे
वो मासूम तितलियाँ...!!

......पंकज शर्मा

गुरुवार, 12 मार्च 2015

"हिन्दी और ऊर्दू"

आज रात (06-03-2015) मेरे शहर में होली मिलन समारोह के उपलक्ष्य में मुस्लिम भाइयों की तरफ से "अखिल भारतीय कवि सम्मेलन" का सफल आयोजन हुआ..,

शुक्रिया उस "मुस्लिम आवाम" का जिसके नाम पर अक्सर कद्दावर नेती गंदी राजनीति करते रहते हैं...!

एक ही मंच से "हिन्दी और ऊर्दू" का समायोजन अभूतपूर्व रहा.....!



आज रात मैंने देखा
ऊर्दू को
खिलखिलाते हुए
हिन्दी औ ऊर्द़ू झूम रही थीं
बाँहों में बाँहें डाल
लग रहा था
कि जैसे
नफ़रत के मेले में,
बिछड़ी
दो बहनें
आँखों में खौफ़ लिऐ बढ़ रही हों
मिलने गले..,

कदम ताल करते हुऐ
ग़जल और दोहे
बढ़ते
चले जा रहे थे
राजपथ पर
झुमरी तलैया के पास
कविताऐं
नाच रहीं थीं
मुशायरों के संग...,

मैं देख रहा था
चमकती
आँखों से होली पर
इस
अद्भुत मिलन
को
ऊर्दू सुबक रही थी
हिन्दी की उपमाऐं
सहला
रही थी भीगी आखों से
बालों को उसके
बसंत
अठखेलियाँ कर रहा था खुले आसमां में...,

इतिहास ग़वाह है ग़र "हिन्दी"
ज़िस्म
तो
ऊर्दू ऱूह है उसकी..,
मगर
आपसी द्वेष,
सामाजिक कुरीतियों
और
राजनैतिक पाटों के बीच
रौंदी गयी
अस्मत् दोनों की..,

आज ऊर्दू की "ऱूह"
समा चुकी थी
हिन्दी के "ज़िस्म" में
माँ
भारती मुस्कुरा रही थी
देखकर
खुले चौबारे में दोनो "बेटियों"
का ये
अद्भुत मिलन

मैं
बस..
बस्स...,
इतना कहूँगा...
ऐ होली....! तेरे आने का शुक्रिया

"जय हिन्द"

.......पंकज शर्मा

बुधवार, 11 मार्च 2015

"माँ" सम्पूर्ण विज्ञान

परमाणु है पदार्थ की
मूलभूत इकाई
मगर
उसके होने का श्रेय जाता है
तीन मौलिक कणों
इलेक्ट्राॅन
प्रोटाॅन
और न्यूट्रोन को
सुना है इलेक्ट्राॅन चलायमान है
नाभिक के
चारों ओर

ठीक उसी तरह
मैं देखता हूँ
पृथ्वी, आकाश, पाताल
और
पूरी सृष्टि को घूमते हुऐ
इलेक्ट्राॅन
की मानिन्द्
माँ
रूपी नाभिक के चारों तरफ

अतिश्योक्ति नहीं होगी
अगर मैं कहूँ
कि पूरा
ब्रह्माण्ड
ऊर्जान्वित् होता है
उस "माँ" में उपस्थित ऊर्जा
अर्थात्
नाभिकीय ऊर्जा से

नाभिक की अपार ऊर्जा से
तो आप
परिचित होंगे ही ना
भली-भाँति...!!

"पंकज शर्मा"

मंगलवार, 10 मार्च 2015

"विज्ञान से परे"

न्यूटन ने बताया
हर वस्तु
अग्रसर है पृथ्वी की ओर
पानी की बूँदें
टप टप
कर टपकती हैं
गुरुत्वाकर्षण की वजह से..,
फिर क्यों
झूलता रहता है
हर कोई
बिना पंखों के
प्यार के खुले आसमां में...??

क्या "प्यार" अपवाद् है
न्यूटन
के नियम का..??
या है
बिना वज़ूद के
द्रव्यमान रहित..??

चलो....सोच कर ज़वाब दे
देना
तुम्हारा
निरुत्तर होना ठीक नहीं है।

.......पंकज शर्मा

बेचारे पेड़

एक चीख़....बड़ी ही दर्दनाक्
अक्समात्
मेरे कानों तक पहुँची..
सिहर उठा
मैं
सुनकर अंदर तक..,
चीख़ रहा था बेतहाशा
इक़
छोटा पौधा
जो चढ़ रहा था सीढ़िया
यौवन की
झर झर झर
काँप रही थीं पत्तियाँ...!

चेहरे पर कुत्सित् मुस्कान लिऐ
आदमजात्
चमका रहा था कुल्हाड़ी
पत्थर के
काले टुकड़े से...

ओह....
कितना खतरनाक वार...!
बंद
हो गयीं चीखें...
हो गया बंद
झरझराना पत्तियों का
हैरां सा
गिर गया "वो"
लिऐ अनेकों प्रश्न चिह्न ज़ेहन में..??

गूँज उठा
राक्षसी अट्ठाहस
पर्यावरण में....!

......पंकज शर्मा