****** ग़ज़ल ******
नफ़रतों को मैं.., मिटाना चाहता हूँ
लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ।
इम्तिहां मुश्किल बड़ा है इश्क़ का ये
इक इसे भी आजमाना चाहता हूँ।
कोई तो आकर के पूछे हाल क्या है
दर्दे-दिल मैं सब बताना चाहता हूँ।
झूठ से जो रंगे पत्थर हैं उन्हें मैं
आइना सच का दिखाना चाहता हूँ।
हों उजाले हर तरफ बस प्रेम के अब
जुगनुओं सा टिमटिमाना चाहता हूँ।
जो हुनर सीखा है मैंनै जिंदगी से
गीत ग़ज़लों में सुनाना चाहता हूँ।
बेजुबाँ जो हैं निशाने पर किसी के
उन "परिंदों" को बचाना चाहता हूँ।
नफ़रतों को मैं.., मिटाना चाहता हूँ
लौ मुहब्बत की जलाना चाहता हूँ।
इम्तिहां मुश्किल बड़ा है इश्क़ का ये
इक इसे भी आजमाना चाहता हूँ।
कोई तो आकर के पूछे हाल क्या है
दर्दे-दिल मैं सब बताना चाहता हूँ।
झूठ से जो रंगे पत्थर हैं उन्हें मैं
आइना सच का दिखाना चाहता हूँ।
हों उजाले हर तरफ बस प्रेम के अब
जुगनुओं सा टिमटिमाना चाहता हूँ।
जो हुनर सीखा है मैंनै जिंदगी से
गीत ग़ज़लों में सुनाना चाहता हूँ।
बेजुबाँ जो हैं निशाने पर किसी के
उन "परिंदों" को बचाना चाहता हूँ।
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