मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

आखिर तो हूँ एक "परिंदा"

*गज़ल*
बह्र -- फेलुन*4

कब तक यूँ दीदार करूँगा
आ जाओ श्रृंगार करूँगा।

एक नज़र ग़र देख लिया तो
कुछ पल आँखे चार करूँगा।

दुनिया के सब छोड़ झमेले
जी भर तुमसे प्यार करूँगा।

धोखे, वादे, झूठ, तसल्ली
खुद को अब तैयार करूँगा।

छोड़ दिया ग़र तन्हां मुझको
खुद पर अत्याचार करूँगा।

ठान लिया है मैंने दिल में
ना अब कोई रार करूँगा।

आखिर तो हूँ एक "परिंदा"
पर्वत, दरिया, पार करूँगा।

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