सफेद लिबास में लिपटी
वो अंजान सी
परछाईं
काली स्याह सड़क पर
चलती चली आती है अक़्सर
बे-ख़टक मेरी तरफ..,
कहने को तो
इंसानी रूहों का
कोई वज़ूद नहीं
मग़र
मैं हो जाता हूँ
बेबस
उसकी रूहानी ताकत के आगे
न जाने क्यूँ "वो"
जकड़ लेती है अक्सर
मुझे सम्मोहन रूपी पाश में..??
.
.
आज रात वह
फिर आयी
ख़्वाब में
और चुपके से
रख गयी
कुछ दर्द भरे लफ़्ज
झोली में मेरी...!
.
.
मैंने देखी
मौत की मुस्कुराहट
उसके चेहरे पर...,
सचमुच..
कितनी हँसी थी..!!
.
.
.
पंकज शर्मा
खैर (अलीगढ़ )
०९९२७७८८१८०
वो अंजान सी
परछाईं
काली स्याह सड़क पर
चलती चली आती है अक़्सर
बे-ख़टक मेरी तरफ..,
कहने को तो
इंसानी रूहों का
कोई वज़ूद नहीं
मग़र
मैं हो जाता हूँ
बेबस
उसकी रूहानी ताकत के आगे
न जाने क्यूँ "वो"
जकड़ लेती है अक्सर
मुझे सम्मोहन रूपी पाश में..??
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आज रात वह
फिर आयी
ख़्वाब में
और चुपके से
रख गयी
कुछ दर्द भरे लफ़्ज
झोली में मेरी...!
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मैंने देखी
मौत की मुस्कुराहट
उसके चेहरे पर...,
सचमुच..
कितनी हँसी थी..!!
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पंकज शर्मा
खैर (अलीगढ़ )
०९९२७७८८१८०
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