रविवार, 12 जुलाई 2015

ब़े-गाना पन.......

और आज जब मुझे
जरूरत है
मेरे चहेतों की
तो ना जाने कहाँ खो गया
वो साथ
वो अपनत्व
ठीक उसी तरह जैसे
हो जाते हैं
गायब
सींग गधे के सिर से,
आज
सभी लोगों से
मुलाकात कर
36 का आँकड़ा" कहावत
चरित्रार्थ होती नजर आई,
क्या
माँ-बाप के बाद
सब ख़तम हो जाता है
अकस्मात् ही...??
क्यों
सब रिश्ते नाते
फीके और बेमानी
नजर आने लगते हैं..??
काश...,
किसी ने
जिम्मेदारी ली होती..,
काश...,
कुछ तो होता
हमारे दरम्यान्..!
आख़िर क्यों
मेरे वज़ूद को
उछाला गया ठोकरों पर
हर बार की तरह
इस बार भी...???
अब और
कितना दूर जाओगे
मेरी आवाज की भी एक सीमा है
पीछे मुड़ कर तो देखो
मेरे लिऐ नहीं तो
इन बच्चों के लिऐ
जो जी रहे हैं
मायूसी भरी जिंदगी।
यक़ीनन आपके जेह़न में
कहीं न कहीं तो
सहानुभूति होगी मेरे प्रति,
बस्स..,
एक बार
सिर्फ एक बार "मैं"
महसूस करना चाहता हूँ उसे,
हे ईश्वर..!
तू तो सब कर सकता है ना
तेरे बाद
अब कोई ठहरता भी तो नहीं
मेरे पास..,
शायद मेरे शरीर से
तन्हाई की "बू" आती है।
कहीं ऐसा ना हो
कि मेरी साँसें ही मुझ से
बग़ावत कर जाऐं।


"पंकज शर्मा"
खैर ( अलीगढ़ )
००९९२७७८८१८०

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