यकीं कैसे करोगे तुम, मेरा मैं खुद को समझाऊँ,
निगाहें भर के देखोगे, जो दिल मैं चीर दिखलाऊँ,
जमाना तो हमेशा से, रहा करता बगावत है,
समय तू ही बता दे अब, अगर जाऊँ किधर जाऊँ।
अब न चिंगारियों को हवा दीजिए।
आग नफ़रत की यारो बुझा दीजिए।
बैर दिल से मिटाकर रहो साथ सब
जान अपनी वतन पर लुटा दीजिए।
यक़ीनन ख़ुदा का सहारा बहुत है।
तुम्हें खूबियों से संवारा बहुत है।
फ़रिश्तों ने देखा तो सजदा किया तब,
लगा खूबसूरत नज़ारा बहुत है।
गुरू ब्रह्म कौ सार है, रहे वेद बतलाय।
खान कबीरा कह गये, गुरु गोविंद कहाय।
हर संकट की राह के, बनते खेवनहार।
ब्रह्म ज्ञान को पा रहे, जो नित शीश नवाय।
*|| पंकज शर्मा "परिंदा" ||*
निगाहें भर के देखोगे, जो दिल मैं चीर दिखलाऊँ,
जमाना तो हमेशा से, रहा करता बगावत है,
समय तू ही बता दे अब, अगर जाऊँ किधर जाऊँ।
अब न चिंगारियों को हवा दीजिए।
आग नफ़रत की यारो बुझा दीजिए।
बैर दिल से मिटाकर रहो साथ सब
जान अपनी वतन पर लुटा दीजिए।
यक़ीनन ख़ुदा का सहारा बहुत है।
तुम्हें खूबियों से संवारा बहुत है।
फ़रिश्तों ने देखा तो सजदा किया तब,
लगा खूबसूरत नज़ारा बहुत है।
गुरू ब्रह्म कौ सार है, रहे वेद बतलाय।
खान कबीरा कह गये, गुरु गोविंद कहाय।
हर संकट की राह के, बनते खेवनहार।
ब्रह्म ज्ञान को पा रहे, जो नित शीश नवाय।
*|| पंकज शर्मा "परिंदा" ||*
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