गुरुवार, 2 फ़रवरी 2017

दुर्मिल सवैया



करता नित वंदन शारद का,
                पद पंकज रोज पखार रहा।
न गुमान रहे अभिमान रहे,
                धन दौलत आज निसार रहा।
यह जीवन सार बने बगिया,
                उर को दिन रात निखार रहा।
अब मात जरा सर हाथ रखो,
                सुत पांव विभूति निहार रहा।।

पंकज शर्मा "परिंदा"

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