मैं पर कटा इक
ऐसा "परिंदा" हूँ--
जो
क
भी
उड़ नहीं सका...!
आज की रात बड़ी
अजीब थी
क्यों कि आज फिर
आकर गिरा था
कोई परिंदा लहू में तरबतर
आँसुओं की बूंदें
काँपती रहीं
दर्द की इन्तहा पाकर
जब भी कोई
परिंदा
चीख़ता है तो
यक़ीनन
कहीं न कहीं
ख़ा
मो
शी
का समुंदर टूटता है
ना जाने कब इस
जीर्ण
देह से मुक्त हो
मैं सुलझाऊँगा
कुछ
अबूझ पहेलियाँ
लोगों की हैवानियत की
हर बार की तरह
इस बार भी
दबे क़दमों से
दर्द
आँखों की कोरों के
दरवाजे
पर दस्तक देता रहा...!
और "मैं" देर रात तक
दोनों हाथों से
चेहरे पर पड़े
क़
त
रों
के निशां पौंछता रहा...!!
रात ढल चुकी थी
और
आज सुबह "परिंदा"
फिर सफ़र में था.....!!
पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180
10/11/2015
ऐसा "परिंदा" हूँ--
जो
क
भी
उड़ नहीं सका...!
आज की रात बड़ी
अजीब थी
क्यों कि आज फिर
आकर गिरा था
कोई परिंदा लहू में तरबतर
आँसुओं की बूंदें
काँपती रहीं
दर्द की इन्तहा पाकर
जब भी कोई
परिंदा
चीख़ता है तो
यक़ीनन
कहीं न कहीं
ख़ा
मो
शी
का समुंदर टूटता है
ना जाने कब इस
जीर्ण
देह से मुक्त हो
मैं सुलझाऊँगा
कुछ
अबूझ पहेलियाँ
लोगों की हैवानियत की
हर बार की तरह
इस बार भी
दबे क़दमों से
दर्द
आँखों की कोरों के
दरवाजे
पर दस्तक देता रहा...!
और "मैं" देर रात तक
दोनों हाथों से
चेहरे पर पड़े
क़
त
रों
के निशां पौंछता रहा...!!
रात ढल चुकी थी
और
आज सुबह "परिंदा"
फिर सफ़र में था.....!!
पंकज शर्मा "परिंदा"
खैर ( अलीगढ़ )
09927788180
10/11/2015
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